बुधवार, 29 सितंबर 2010
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा....
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं उसकी ये गुलसिताँ हमारा
ग़ुरबत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा
...
पर्बत वो सब से ऊँचा हमसाया आसमाँ का
वो सन्तरी हमारा वो पासबाँ हमारा
गोदी में खेलती हैं जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिस के दम से रश्क-ए-जिनाँ हमारा
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा, वो दिन है याद तुझ को
उतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा
'इक़बाल' कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा
(शायर इकबाल द्वारा रचित)
ज़रा याद करो क़ुरबानी....
मेरे प्रिय सह नागरिको, देश हित केवल नारे लगाने से या शहीदों के जन्मदिन के उपलक्ष्य में कुछ एक टिप्पड़ियाँ लिखने से नहीं होता. आवश्यकता नहीं है हमें की हम एक दिन जोश में आकर अच्छी तरह से देश प्रेम की बातें जोश और जज्बे से करें. आवश्यकता है -... इन शहीदों के सपनों को समझने की ? ये समझने की उन्होंने स्व-बलिदान देने की बात हमारे देश को किस हाल में देखने के लिए सोची ? क्या उनके हृदय और मस्तष्क में आज के भारत की ही तस्वीर थी ? अगर नहीं -तो किस स्वाधीन भारत का सपना देखा था उन अमर शहीदों ने ? और अगर हम उनके सपने साकार नहीं कर पा रहें है, कारण चाहे जो भी हो, तो ये उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि नहीं हो सकती. एक दिन के लिए जोश में आकर हम सब यहाँ कमेंट्स कर रहे हैं और कल हम फिर भूल जायेंगे. और फिर जब किसी और की पुण्यतिथि आएगी तो फिर हम जाग जायेंगे और कमेंट्स करेंगे. जरुरत है की जिस तरह उस समय सभी एक जुट होकर देश हित की बात कर रहे थे, स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने की सोच रहे थे, अब हम सबको सोचना चाहिए. उस वक्त में और आज के वक्त में सिर्फ एक ही बदलाव है- की आज हम फेसबुक पर कमेंट्स कर रहे हैं उस समय नहीं होती थी ये सुविधाएं, भारत उस समय अंग्रेजों के चंगुल में था, तो आज कुछ भ्रस्टाचार, बदहाली, भुखमरी, गरीबी और लाचारी के चंगुल में है. उस समय हम कुछ एक चुनिन्दा मुट्ठी भर लोगों की हुकूमत में थे, आज हम सब दूषित राजनीति की, धर्मवाद, परिवारवाद की राजनीति की हुकूमत में है. स्थिति वैसी ही है जैसी तब थी, कमी सिर्फ भगत सिंह, आजाद, नेता जी, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल आदि जैसे लोगों की है, क्यों की उस वक्त इन शहीदों ने समझ लिया था की करना क्या है देश के लिए, और हमें आज तक हमारा मकसद नहीं मिल रहा.
THERE IS A PROVERB IN ENGLISH- "FIND THE PURPOSE, MEANS WILL FIND THE WAYS"
तो मेरा तो हम सब से एक ही आग्रह है - कि इन शहीदों के कहे हुए वाक्य दोहराने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है उनके अधूरे सपने को पूरा करने की, वो सपना जिसे वो अपनी आँखों में लेकर ही चले गए. हमारी सच्ची श्रद्धांजलि वही होगी उनके लिए,
अश्रुपूरित नेत्रों से भावभीनी श्रद्धांजलि आपको भगत सिंह जी,
आशान्वित हूँ कि मैंने किसी के भावों को ठेस नहीं पहुंचाई होगी, और यदि किसी को पहुँची हो, तो कृपया क्षमा कर दें
आदित्य कुमार
सहयोगी, आजाद हिंद मंच
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
यूपी में पंचायत चुनाव....
शनिवार, 1 मई 2010
दर्द.......
दुनिया ने दुःख दिए, जीने कि अब चाह नहीं है,
क्या करूँ अब ज़िन्दगी में, ज़ीने की कोई राह नहीं है।
अपनत्व को मैं खोजता रहा, मतलबी दुनिया के घनेरे में,
प्यार कभी मैं पा न सका, ज़िन्दगी के अँधेरे में।
अपनों को अपने में, खोजता ही रह गया,
ज़िन्दगी को सपनों में, ढूंढता ही रह गया।
अब तक मैं दूसरों का, था संबल बना रहा,
ज़रूरत पड़ी तो मेरा ही कोई न रहा।
सहारे को सहारे की, ज़रूरत अब पड़ गई,
ज़िन्दगी अब ज़िन्दगी की, चेरी बनकर रह गई।
सोचते थे दुनिया में, प्यार ही प्यार है,
लेकिन यहाँ पर तो, विष का ही भरमार है।
ज़िन्दगी में अब ज़ीने की, राह नहीं दिखती है,
नज़र उठा के देखो तो, अँधेरा ही अँधेरा है।
कोई तो होगा अपना, जो रास्ता दिखायेगा,
क्या सही-क्या गलत, पहचान तो बताएगा।
ज़िन्दगी की मशाल हाथ में दे, राह जो सुझाएगा,
ज़िन्दगी में अपनों की, पहचान तो बताएगा।
आज तक हम लोगों को, रास्ता दिखाते थे,
उनके दुखों को बाँट के, उनके हमराही बन जाते थे।
आज तो हम खुद दूसरों से, अनजाने हो गए,
अब तो अपने ही हमसे, बेगाने जैसे हो गए।
जिनके सामने आसमां भी झुक जाता था, आज वो खुद झुक गया,
अपनों के हाथों उसका, अपना इंतकाल हो गया।
दुनिया से नहीं, गिला है उनके दिखावों से,
नफरत है उनके छद्म रूप, और उनके छलावों से।
अपनत्व दिखाकर, प्यार का गला घोंटते हैं,
अपनों को अपने से ही, दूर किया करते हैं।
दुनिया ने तोड़कर हमें, चूर-चूर कर दिया,
ज़िन्दगी और प्यार को, आँखों से दूर कर दिया।
दुनिया को मोह नहीं, डूबते सितारों से,
प्यार नहीं एक से, दिखावा हजारों से।
अपनों की जुबां से निकला एक लफ्ज़, अमृत सदृश्य हो जाता है,
प्यार के दो बोल, गैरों को भी अपना बनाता है।
कोई तो होगा अपना, जिसके कंधे पर सर रखकर,
अपने को सुरक्षित, महसूस कर सकें।
कोई तो बनेगा अपना, चाहे बेगाना ही सही,
प्यार देगा अपनों का, चाहे अनजाना ही सही।
अपनों के भेष में, दुश्मन छिपे रहते हैं,
यार वही नेक हैं, जो अंधकार दूर किया करते हैं।
शमा के जलने पर, परवाने नज़र आते हैं,
दुखों के आने पर, अपने याद आते हैं।
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........
जय हिंद!
क्या करूँ अब ज़िन्दगी में, ज़ीने की कोई राह नहीं है।
अपनत्व को मैं खोजता रहा, मतलबी दुनिया के घनेरे में,
प्यार कभी मैं पा न सका, ज़िन्दगी के अँधेरे में।
अपनों को अपने में, खोजता ही रह गया,
ज़िन्दगी को सपनों में, ढूंढता ही रह गया।
अब तक मैं दूसरों का, था संबल बना रहा,
ज़रूरत पड़ी तो मेरा ही कोई न रहा।
सहारे को सहारे की, ज़रूरत अब पड़ गई,
ज़िन्दगी अब ज़िन्दगी की, चेरी बनकर रह गई।
सोचते थे दुनिया में, प्यार ही प्यार है,
लेकिन यहाँ पर तो, विष का ही भरमार है।
ज़िन्दगी में अब ज़ीने की, राह नहीं दिखती है,
नज़र उठा के देखो तो, अँधेरा ही अँधेरा है।
कोई तो होगा अपना, जो रास्ता दिखायेगा,
क्या सही-क्या गलत, पहचान तो बताएगा।
ज़िन्दगी की मशाल हाथ में दे, राह जो सुझाएगा,
ज़िन्दगी में अपनों की, पहचान तो बताएगा।
आज तक हम लोगों को, रास्ता दिखाते थे,
उनके दुखों को बाँट के, उनके हमराही बन जाते थे।
आज तो हम खुद दूसरों से, अनजाने हो गए,
अब तो अपने ही हमसे, बेगाने जैसे हो गए।
जिनके सामने आसमां भी झुक जाता था, आज वो खुद झुक गया,
अपनों के हाथों उसका, अपना इंतकाल हो गया।
दुनिया से नहीं, गिला है उनके दिखावों से,
नफरत है उनके छद्म रूप, और उनके छलावों से।
अपनत्व दिखाकर, प्यार का गला घोंटते हैं,
अपनों को अपने से ही, दूर किया करते हैं।
दुनिया ने तोड़कर हमें, चूर-चूर कर दिया,
ज़िन्दगी और प्यार को, आँखों से दूर कर दिया।
दुनिया को मोह नहीं, डूबते सितारों से,
प्यार नहीं एक से, दिखावा हजारों से।
अपनों की जुबां से निकला एक लफ्ज़, अमृत सदृश्य हो जाता है,
प्यार के दो बोल, गैरों को भी अपना बनाता है।
कोई तो होगा अपना, जिसके कंधे पर सर रखकर,
अपने को सुरक्षित, महसूस कर सकें।
कोई तो बनेगा अपना, चाहे बेगाना ही सही,
प्यार देगा अपनों का, चाहे अनजाना ही सही।
अपनों के भेष में, दुश्मन छिपे रहते हैं,
यार वही नेक हैं, जो अंधकार दूर किया करते हैं।
शमा के जलने पर, परवाने नज़र आते हैं,
दुखों के आने पर, अपने याद आते हैं।
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........
जय हिंद!
बुधवार, 7 अप्रैल 2010
सच्ची ज़िन्दगी
ज़िन्दगी तो सभी जीते हैं इस दुनिया में,
पर कोई जीता है ऐसे कि जैसे
दुनिया जीती है उसके लिए।
मर गए भी तो गम नहीं कि
ज़िन्दगी तो सबको दी,
चाहे ज़िन्दगी अपनी ना रही,
पार दी ज़िन्दगी सबको हमने ही।
अपने को चाहे दुःख में डूबा दिया,
लेकिन सबके दुखों को मिटा तो दिया।
जीना तो तभी एक जीना है,
जो जिया यहाँ पर सबके लिए।
गम न कर ऐ राहे नज़र,
गम तो आते है हम सब पर,
कोई गम को पी जाता है,
किसी को गम ही पी जाता है।
राह कोई मुश्किल है नहीं,
अगर राही में जूझने कि शक्ति है,
ज़ख्म कोई गहरा है नहीं,
दर्द से लड़ने कि हिम्मत जिसमे है।
दुनिया से अगर सुख लेना है,
अपनों को अगर कुछ देना है,
ज़िन्दगी से कभी मत तुम हारो,
सबके दुखों को खुद टारो।
हंसना तो सभी को आता है,
सुख तो सबको ही भाता है,
क्या प्यार जताना भी आता है?
क्या दर्द मिटाना आता है?
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है...........
जय हिंद!
पर कोई जीता है ऐसे कि जैसे
दुनिया जीती है उसके लिए।
मर गए भी तो गम नहीं कि
ज़िन्दगी तो सबको दी,
चाहे ज़िन्दगी अपनी ना रही,
पार दी ज़िन्दगी सबको हमने ही।
अपने को चाहे दुःख में डूबा दिया,
लेकिन सबके दुखों को मिटा तो दिया।
जीना तो तभी एक जीना है,
जो जिया यहाँ पर सबके लिए।
गम न कर ऐ राहे नज़र,
गम तो आते है हम सब पर,
कोई गम को पी जाता है,
किसी को गम ही पी जाता है।
राह कोई मुश्किल है नहीं,
अगर राही में जूझने कि शक्ति है,
ज़ख्म कोई गहरा है नहीं,
दर्द से लड़ने कि हिम्मत जिसमे है।
दुनिया से अगर सुख लेना है,
अपनों को अगर कुछ देना है,
ज़िन्दगी से कभी मत तुम हारो,
सबके दुखों को खुद टारो।
हंसना तो सभी को आता है,
सुख तो सबको ही भाता है,
क्या प्यार जताना भी आता है?
क्या दर्द मिटाना आता है?
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है...........
जय हिंद!
सोमवार, 5 अप्रैल 2010
"शहीद की मंजिल"
हम चले थे साथ मंजिल पाने के लिए,
राह लम्बी थी हमारी, रास्ता भी कठिन
लेकिन दिल में थी आशा, होठों पे मुस्कान,
दर्द न था परेशानियों का, दुःख भी भूल गए।
मन में थी लगन, इच्छा थी कुछ कर दिखाने की।
मंजिल के करीब आने की ख़ुशी थी सबको,
पर मेरे मन में थी आशंका, कोई छूट न जाये।
दर्द न था कठिनाइयों का मन में लेकिन
भय था सबके लिए की कोई बिछड़ ना जाये,
पर था अडिग मैं राह की चुनौतियों के लिए,
लाख आये क्यों न मुसीबतें, झेलूँगा अकेले।
घिरने ना दूंगा किसी को कष्ट के भंवर में,
आखिर हैं तो अपने ही, चले भी थे साथ ही,
मंजिल भी एक है, रास्ता भी एक है।
कठिनाइयाँ थी मुह बाये खड़े, खाने को तत्पर,
पर मैं था दृढ झेलने को सबको।
कुछ तो निकल गए, अपना रास्ता बना के,
कुछ को निकाला मैंने, रास्ता बता के,
सब निकल गए आगे मंजिल पर,
मैं था पीछे मुसीबतों से ढक कर।
मुझे गम नहीं की आगे निकल गए सब,
पर एक भय है कि क्या उनको मंजिल मिलेगी?
क्या वे पार कर पाएंगे, रास्ते के अंधियारों को?
क्या फिर वे रास्ता निकालेंगे? कि
फिर उनको कोई "मैं" मिलेगा रास्ता सुझाने को।
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.............
जय हिंद!
राह लम्बी थी हमारी, रास्ता भी कठिन
लेकिन दिल में थी आशा, होठों पे मुस्कान,
दर्द न था परेशानियों का, दुःख भी भूल गए।
मन में थी लगन, इच्छा थी कुछ कर दिखाने की।
मंजिल के करीब आने की ख़ुशी थी सबको,
पर मेरे मन में थी आशंका, कोई छूट न जाये।
दर्द न था कठिनाइयों का मन में लेकिन
भय था सबके लिए की कोई बिछड़ ना जाये,
पर था अडिग मैं राह की चुनौतियों के लिए,
लाख आये क्यों न मुसीबतें, झेलूँगा अकेले।
घिरने ना दूंगा किसी को कष्ट के भंवर में,
आखिर हैं तो अपने ही, चले भी थे साथ ही,
मंजिल भी एक है, रास्ता भी एक है।
कठिनाइयाँ थी मुह बाये खड़े, खाने को तत्पर,
पर मैं था दृढ झेलने को सबको।
कुछ तो निकल गए, अपना रास्ता बना के,
कुछ को निकाला मैंने, रास्ता बता के,
सब निकल गए आगे मंजिल पर,
मैं था पीछे मुसीबतों से ढक कर।
मुझे गम नहीं की आगे निकल गए सब,
पर एक भय है कि क्या उनको मंजिल मिलेगी?
क्या वे पार कर पाएंगे, रास्ते के अंधियारों को?
क्या फिर वे रास्ता निकालेंगे? कि
फिर उनको कोई "मैं" मिलेगा रास्ता सुझाने को।
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.............
जय हिंद!
रविवार, 4 अप्रैल 2010
दुःख-दर्द की दुनिया
माँ की ममता माँ ही जाने और ना जाने कोई।
दुनिया सब कुछ देख रही है, लेकिन फिर भी सोई॥
दर्द ना जाने कोई मन का, प्यार बिना सब सूखा।
पाने की लालसा है सबको, पर कोई है भूखा॥
अपने दुःख को दुःख वे समझें, दूजा कोई ना प्यासा।
दुःख ही दुःख है इस दुनिया में, लेकिन कुछ है आशा॥
दुःख में डूबे खुद ही रहना, है ये सबसे अच्छा।
अपने को सोचो तुम ऐसे, जैसे सब है सच्चा॥
अपना हित ही सबका हित है, ऐसा कभी ना करना।
चोटिल हैं सब इस दुनिया में, सबके घाव को भरना॥
दर्द का सागर है ये दुनिया, सुख है एक मोती के जैसे।
संबल एक पतवार है इसमें, राह मिले फिर कैसे॥
मन तो माटी का है पुतला, सांचो चाहे जिसमे।
प्यार अगर मिल जाये इसको, दुःख काहे का आये इसमें॥
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है..........
जय हिंद!
दुनिया सब कुछ देख रही है, लेकिन फिर भी सोई॥
दर्द ना जाने कोई मन का, प्यार बिना सब सूखा।
पाने की लालसा है सबको, पर कोई है भूखा॥
अपने दुःख को दुःख वे समझें, दूजा कोई ना प्यासा।
दुःख ही दुःख है इस दुनिया में, लेकिन कुछ है आशा॥
दुःख में डूबे खुद ही रहना, है ये सबसे अच्छा।
अपने को सोचो तुम ऐसे, जैसे सब है सच्चा॥
अपना हित ही सबका हित है, ऐसा कभी ना करना।
चोटिल हैं सब इस दुनिया में, सबके घाव को भरना॥
दर्द का सागर है ये दुनिया, सुख है एक मोती के जैसे।
संबल एक पतवार है इसमें, राह मिले फिर कैसे॥
मन तो माटी का है पुतला, सांचो चाहे जिसमे।
प्यार अगर मिल जाये इसको, दुःख काहे का आये इसमें॥
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है..........
जय हिंद!
शनिवार, 3 अप्रैल 2010
सांसारिक मोह!
अगर तुम हमको मिले होते,
तो ख़ुशी हमको कितनी होती।
जीवन के इस मंझधार में,
ज़िन्दगी कभी यूँ ना रोती॥
राह में हमने सदा,
दुःख को ही अपना बनाया।
जो मिला हमें प्यार से,
उसको गले हमने लगाया॥
ज़िन्दगी ने हर मोड़ पे,
हमको कुछ हरदम सिखाया।
गर्व को तोडा हमेशा,
अपनों से सबको मिलाया॥
दुःख ने है जिसको सताया,
प्यार भी उसने है पाया।
प्रेम एक मीठा ज़हर है,
दर्द को इसने हराया॥
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है........
जय हिंद!
तो ख़ुशी हमको कितनी होती।
जीवन के इस मंझधार में,
ज़िन्दगी कभी यूँ ना रोती॥
राह में हमने सदा,
दुःख को ही अपना बनाया।
जो मिला हमें प्यार से,
उसको गले हमने लगाया॥
ज़िन्दगी ने हर मोड़ पे,
हमको कुछ हरदम सिखाया।
गर्व को तोडा हमेशा,
अपनों से सबको मिलाया॥
दुःख ने है जिसको सताया,
प्यार भी उसने है पाया।
प्रेम एक मीठा ज़हर है,
दर्द को इसने हराया॥
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है........
जय हिंद!
गुरुवार, 1 अप्रैल 2010
ज़िन्दगी का अर्थ
ज़िन्दगी तो चार दिनों की मेहमान है,
यहाँ आना और आके चले जाना सबका काम है।
जो ज़िन्दगी को जीता है,
खुशियों को देता है,
सबको हंसाता है, और
हंसा के चला जाता है,
उस ज़िन्दगी को लोग कहते महान है,
ये ज़िन्दगी तो चार दिनों की मेहमान है।
ज़िन्दगी की जियो तुम शान से,
मुस्कान लो कलियों की मुस्कान से।
ज़िन्दगी तो खुशियों की हर खान है,
खुशियाँ तो ज़िन्दगी की रसपान हैं।
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........
जय हिंद!
यहाँ आना और आके चले जाना सबका काम है।
जो ज़िन्दगी को जीता है,
खुशियों को देता है,
सबको हंसाता है, और
हंसा के चला जाता है,
उस ज़िन्दगी को लोग कहते महान है,
ये ज़िन्दगी तो चार दिनों की मेहमान है।
ज़िन्दगी की जियो तुम शान से,
मुस्कान लो कलियों की मुस्कान से।
ज़िन्दगी तो खुशियों की हर खान है,
खुशियाँ तो ज़िन्दगी की रसपान हैं।
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........
जय हिंद!
सोमवार, 29 मार्च 2010
इज्ज़त
जिनसे मिलते ही सर झुक जाता है,
जिनके सामने गर्व भी टूट जाता है,
जिनसे जीने का संबल है मुझको मिला,
जिसने दूर किया अपना सब गिला,
मन करता है हम भी उनको कुछ दे दें।
लेकिन फिर सोचते हैं...
जिनसे है हमने सब कुछ लिया,
जिन्होंने दामन को खुशियों से भर दिया,
क्या हमने भी उनको है कुछ भी दिया?
ज़िन्दगी के भंवर में हम तो फंस गए थे,
मन में था गम और आँखों में आंसू थे।
कुछ सिरफिरों ने लूट लिया अरमानों की डोली को,
फिर ज़िन्दगी में भर दिया विषादों के हमजोली को।
अगर ज़िन्दगी को जीना है,
तो फिर आंसू भी पीना है।
इज्ज़त हम उन्ही को देते हैं,
जो हमें अपना समझते हैं।
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है............
जय हिंद!
जिनके सामने गर्व भी टूट जाता है,
जिनसे जीने का संबल है मुझको मिला,
जिसने दूर किया अपना सब गिला,
मन करता है हम भी उनको कुछ दे दें।
लेकिन फिर सोचते हैं...
जिनसे है हमने सब कुछ लिया,
जिन्होंने दामन को खुशियों से भर दिया,
क्या हमने भी उनको है कुछ भी दिया?
ज़िन्दगी के भंवर में हम तो फंस गए थे,
मन में था गम और आँखों में आंसू थे।
कुछ सिरफिरों ने लूट लिया अरमानों की डोली को,
फिर ज़िन्दगी में भर दिया विषादों के हमजोली को।
अगर ज़िन्दगी को जीना है,
तो फिर आंसू भी पीना है।
इज्ज़त हम उन्ही को देते हैं,
जो हमें अपना समझते हैं।
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है............
जय हिंद!
रविवार, 21 मार्च 2010
माँ और मातृभूमि
नमन करो तुम उस भारत को, जिस पर तुमने जन्म लिया।
नमन करो तुम उस जननी को, जिसने तुम्हे है जन्म दिया॥
करो प्रतिज्ञा की हम, भारत माँ की लाज बचायेंगे।
जिस जननी ने जन्म दिया, नित उसको शीश नवायेंगे॥
भारत माँ की आन की खातिर, हम अपना शीश कटा देंगे।
माँ की ममता की खातिर, हम अपनी बलि चढ़ा देंगे॥
भारत माँ की खोई गौरव को हम वापिस लायेंगे।
माँ की दूध की खातिर, हम अपना धरम निभाएंगे॥
हम-तुम भी इस देश की खातिर, अपनी जान लड़ा देंगे।
जिस माँ ने हमको जन्म दिया, उस माँ का क़र्ज़ चुका देंगे॥
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........
जय हिंद!
नमन करो तुम उस जननी को, जिसने तुम्हे है जन्म दिया॥
करो प्रतिज्ञा की हम, भारत माँ की लाज बचायेंगे।
जिस जननी ने जन्म दिया, नित उसको शीश नवायेंगे॥
भारत माँ की आन की खातिर, हम अपना शीश कटा देंगे।
माँ की ममता की खातिर, हम अपनी बलि चढ़ा देंगे॥
भारत माँ की खोई गौरव को हम वापिस लायेंगे।
माँ की दूध की खातिर, हम अपना धरम निभाएंगे॥
हम-तुम भी इस देश की खातिर, अपनी जान लड़ा देंगे।
जिस माँ ने हमको जन्म दिया, उस माँ का क़र्ज़ चुका देंगे॥
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........
जय हिंद!
शुक्रवार, 19 मार्च 2010
हिंदी, हिंद का गौरव
जिस धरती पर जन्म लिया, उस धरती का तुम मान करो।
जिस भाषा ने ज्ञान दिया, उस भाषा का सम्मान करो॥
जिस धरती पर संस्कृति का, सबसे पहले विकास हुआ।
क्या उस धरती पर ही, उनकी भाषा का है अब ह्रास हुआ॥
जिस भाषा से गाँधी ने था, जन-जन का आह्वान किया।
जिस भाषा को संविधान ने भी था सम्मान दिया॥
उस भाषा के निज गौरव पर, तुम भी अब अभिमान करो
उस भाषा के स्वाभिमान को, वापिस लाने का फिर तुम अब अधिष्ठान करो॥
भारत माँ के चरणों में, हम नित-नित शीश नवायेंगे।
भाषा के खोये गौरव को, हम फिर वापिस लायेंगे॥
जिस भाषा ने आज तक दिया था सबको ज्ञान।
उस भाषा का आज फिर धरना हमको ध्यान॥
जिस पश्चिम के देश ने था हमको भी गुलाम किया।
उस पश्चिम की भाषा पर क्या तुमने है अब आस किया?
जिस भूमि पर सत्य ही सदा रहा सगुण सर्वेश।
उस भाषा का एक ही प्रेम है निर्गुण सन्देश॥
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........
जय हिंद........
जिस भाषा ने ज्ञान दिया, उस भाषा का सम्मान करो॥
जिस धरती पर संस्कृति का, सबसे पहले विकास हुआ।
क्या उस धरती पर ही, उनकी भाषा का है अब ह्रास हुआ॥
जिस भाषा से गाँधी ने था, जन-जन का आह्वान किया।
जिस भाषा को संविधान ने भी था सम्मान दिया॥
उस भाषा के निज गौरव पर, तुम भी अब अभिमान करो
उस भाषा के स्वाभिमान को, वापिस लाने का फिर तुम अब अधिष्ठान करो॥
भारत माँ के चरणों में, हम नित-नित शीश नवायेंगे।
भाषा के खोये गौरव को, हम फिर वापिस लायेंगे॥
जिस भाषा ने आज तक दिया था सबको ज्ञान।
उस भाषा का आज फिर धरना हमको ध्यान॥
जिस पश्चिम के देश ने था हमको भी गुलाम किया।
उस पश्चिम की भाषा पर क्या तुमने है अब आस किया?
जिस भूमि पर सत्य ही सदा रहा सगुण सर्वेश।
उस भाषा का एक ही प्रेम है निर्गुण सन्देश॥
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........
जय हिंद........
बुधवार, 17 मार्च 2010
जलती मशाल!
हम जन्मे भी थे अकेले, मरकर जायेंगे भी अकेले।
ज़िन्दगी में ना कुछ अपना लाये थे, ना कुछ अपना हम ले जायेंगे।।
दुनिया में ना कोई अपना है, कुछ भी सोचना बस एक सपना है।
कुछ सोचना बस एक आस है, ज़िन्दगी में सिर्फ प्यास है।
हमने तो सबको ख़ुशी ही दिया, लोगों के आंसू को हमने पिया।
ज़िन्दगी को हमने रो-रो के जिया, फिर हमने कुछ ना किया।।
सुख की चाह में दुःख को झेलते रहे, फिर भी हमें ज़िन्दगी में अपने ना मिले।
अपनों को जो अपना समझते है,
ज़िन्दगी में उन्हें दुःख ही दुःख मिलते हैं।
मन की आँखों से देखो, सब सच्चाई दिख जाएगी।
लेकिन हकीक़त में कुछ नहीं सामने आयेगी॥
अपने के अन्दर का अपना, सिर्फ अपना है।
दूसरों का अपना, सिर्फ एक सपना है॥
पथ के राही बस साथ-साथ चलते हैं,
मंजिल के मिलने पर, फिर नहीं मिलते हैं।
जो दूसरों के कंधे पर सर रखकर सोते हैं,
ज़िन्दगी में वे अपना सब कुछ खो देते हैं।
ज़िन्दगी में दूसरों को, अपना समझने की भूल ना करो,
स्वयं को अपना सहारा बनाने की बस कोशिश करो।
किसी से कुछ पाने की कभी चाह ना करो,
अपनी अन्दर की शक्ति पर केवल अभिमान करो॥
ना तो कोई कभी अपना होता है,
जो तुम चाहते हो, वो कभी नहीं होता है।
अपनी शक्ति की तुलना, अपनी मन की तुला से करो,
ज़िन्दगी में लगे घावों को भूल के क्षमा करो॥
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........
जय हिंद....
ज़िन्दगी में ना कुछ अपना लाये थे, ना कुछ अपना हम ले जायेंगे।।
दुनिया में ना कोई अपना है, कुछ भी सोचना बस एक सपना है।
कुछ सोचना बस एक आस है, ज़िन्दगी में सिर्फ प्यास है।
हमने तो सबको ख़ुशी ही दिया, लोगों के आंसू को हमने पिया।
ज़िन्दगी को हमने रो-रो के जिया, फिर हमने कुछ ना किया।।
सुख की चाह में दुःख को झेलते रहे, फिर भी हमें ज़िन्दगी में अपने ना मिले।
अपनों को जो अपना समझते है,
ज़िन्दगी में उन्हें दुःख ही दुःख मिलते हैं।
मन की आँखों से देखो, सब सच्चाई दिख जाएगी।
लेकिन हकीक़त में कुछ नहीं सामने आयेगी॥
अपने के अन्दर का अपना, सिर्फ अपना है।
दूसरों का अपना, सिर्फ एक सपना है॥
पथ के राही बस साथ-साथ चलते हैं,
मंजिल के मिलने पर, फिर नहीं मिलते हैं।
जो दूसरों के कंधे पर सर रखकर सोते हैं,
ज़िन्दगी में वे अपना सब कुछ खो देते हैं।
ज़िन्दगी में दूसरों को, अपना समझने की भूल ना करो,
स्वयं को अपना सहारा बनाने की बस कोशिश करो।
किसी से कुछ पाने की कभी चाह ना करो,
अपनी अन्दर की शक्ति पर केवल अभिमान करो॥
ना तो कोई कभी अपना होता है,
जो तुम चाहते हो, वो कभी नहीं होता है।
अपनी शक्ति की तुलना, अपनी मन की तुला से करो,
ज़िन्दगी में लगे घावों को भूल के क्षमा करो॥
(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........
जय हिंद....
सोमवार, 8 मार्च 2010
बुधवार, 27 जनवरी 2010
जय हो बाबा रामदेव!
बाबा रामदेव २७ जनवरी को बनारस में थे। बड़ागांव में एक सभा के बाद चंदौली में दो दिन के योग शिविर के लिए जा रहे थे। भोजूबीर से गुजरना था। आर्य समाज ने उनके स्वागत की तैयारी की थी। हमें भी कहा गया तो हम भी तैयार हो गए। करीब दो घंटे के इंतजार के बाद तक़रीबन रात ९ बजे बाबा भोजूबीर से गुजरे। हम लोगों ने चौराहे पर रोककर उनका स्वागत किया। जानकारी के मुताबिक बाबा का योग शिविर का कार्यक्रम सफल रहा। सुदूर गाँव में शायद बाबा का ये पहला कार्यक्रम था। लेकिन अब बाबा गाँव में समय देंगे।
बाबा रामदेव का ये अभियान रंग ला रहा है। परिवर्तन शुरू हो गया है, लेकिन सवा सौ करोड़ के इस देश में इसका पूरा असर दिखने में समय लगेगा। बाबा का योग गाँव-गिराव तक पहुँच गया है। अब भारत स्वाभिमान भी गाँव में दस्तक देने लगा है। लोग अभी तक सो रहे थे। अभी जागना शुरू किया है, अंगड़ाई ले रहे हैं। चेतना लौट रही है। कहा जाता है की आदमी सोने के बाद मर जाता है। जगता है तो जिंदा होता है। अब जागा है। जागने के बाद आदमी अलसाया रहता है। आलस जाने में समय लगता है।
आज़ादी की लड़ाई १८५७ में शुरू हुई, आज़ादी १९४७ में मिली। ९० साल लग गए आज़ादी पाने में। तो भारत को भ्रष्टाचार, सांस्कृतिक गुलामी से मुक्ति पाने में कुछ समय तो लगेगा, अगर उसकी अब शुरुआत हो रही है। ..................जय हिंद!
गुरुवार, 21 जनवरी 2010
पत्रकार : अपनी आवाज़ नहीं उठा सकते
पत्रकार दूसरों के हक के लिए लड़ता है, लेकिन उसका हक जब मारा जाता है, तो अपने बात कही नहीं कह पता। उसके साथ मजदूरों जैसा व्यवहार किया जाता है, दिहाड़ी भी टाइम से नहीं मिलती, उसमे भी कभी भी कटौती कर ली जाती है। उस पर कारन पूछ लिया जाय तो नियोक्ता chhutti करने की धमकी देता है। मजदूरों की तो सरकार ने भी मजदूरी तय कर दी है, लेकिन पत्रकारों का कोई वेतन तय नहीं है। जितने में बारगेनिंग हो जाय।
तमाम प्रेस संगठन बने हुए हैं, प्रेस क्लब भी दिल्ली में बना हुआ है, लेकिन लगता है ये केवल शराब का अड्डा बन कर रह गया है, जहाँ शाम को स्वनाम धन्य पत्रकार अपना गम गाफिल करते हैं। पत्रकारिता में शराब और कुछ चीज़ों जिसकी सार्वजनिक चर्चा करना उचित नहीं है, जैसे ज़रूरी हो गई हैं। ये लोग इस पर अपना सर्वाधिकार समझाते हैं, और कुछ पत्रकार तो इसका बड़े गर्व के साथ इसकी विवेचना करते हैं। लोगों के बीच में ये बताते घूमते हैं की फलां पत्रकार ऐसे करता है, वैसे करता है आदि।
भाई गिरावट हर जगह आई है, लेकिन आप के ऊपर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है इसलिए लोगों की उम्मीदें आपसे बहुत ज्यादा हैं। जारी है.........
तमाम प्रेस संगठन बने हुए हैं, प्रेस क्लब भी दिल्ली में बना हुआ है, लेकिन लगता है ये केवल शराब का अड्डा बन कर रह गया है, जहाँ शाम को स्वनाम धन्य पत्रकार अपना गम गाफिल करते हैं। पत्रकारिता में शराब और कुछ चीज़ों जिसकी सार्वजनिक चर्चा करना उचित नहीं है, जैसे ज़रूरी हो गई हैं। ये लोग इस पर अपना सर्वाधिकार समझाते हैं, और कुछ पत्रकार तो इसका बड़े गर्व के साथ इसकी विवेचना करते हैं। लोगों के बीच में ये बताते घूमते हैं की फलां पत्रकार ऐसे करता है, वैसे करता है आदि।
भाई गिरावट हर जगह आई है, लेकिन आप के ऊपर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है इसलिए लोगों की उम्मीदें आपसे बहुत ज्यादा हैं। जारी है.........
बुधवार, 20 जनवरी 2010
क्षत्रिय चेतना जागरण रथयात्रा : अलग पूर्वांचल राज्य का प्रयास
बनारस में क्षत्रिय चेतना जागरण रथयात्रा की २० जनवरी २०१० को शुरुआत हुई। इस कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण और मुख्य अतिथि थे क्षत्रिय शिरोमणि कुलभूषण ठाकुर अमर सिंह। प्लेन लेट होने की वजह से दोपहर १२ बजे के कार्यक्रम में शाम ५ बजे पहुंचे। जितने लोग कार्यक्रम में maujood थे, utane hi लोग unke kaphile के sath pahunche। in logon का kam रथयात्रा की saphalata nahi अमर सिंह को apna chehara dikhana और unke zindabad के nare lagana bhar tha। agar kisi bade neta के sath gaye hain to अमर सिंह के sath us neta के zindabad के nare lagayenge. अब पता नहीं इससे क्षत्रिय समाज का कितना कल्याण होगा। खैर जिस मकसद से ये प्रोग्राम हुआ अगर ओ कामयाब हुआ तो समाज का जरूर कल्याण होगा।
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुंवर हरिवंश सिंह ने जो कार्य योजना बताई, अगर ओ अमल में आ गई तो समाज के हर वर्ग का कल्याण होगा। उन्होंने विकास के लिए गाँव को केंद्र बिंदु बनाने की बात कही, अगर ऐसा हो जाता है तो गाँव का, किसान का कल्याण हो जायेगा। पूर्वांचल के लोगो को मुंबई, दिल्ली की ठोकरे और लानते नहीं सहनी होगी। गर्व के साथ सभी अपनी जन्मभूमि के साथ जुड़े रहेंगे। हरिवंश सिंह ने इस बात का आश्वासन दिया की मुंबई के डॉक्टर जौनपुर में आकर इलाज करेंगे। ये अच्छी बात है। उन्होंने कहाँ क्षत्रिय दहेज़ ना ले, घर में वर्किंग (जो नौकरी भी कर सके यानि पढ़ी-लिखी हो) बहू लायें, सामूहिक शादी करे ताकि फालतू खर्च से बचा जा सके। उन्होंने रोजगारपरक शिक्षा की वकालत की। ये बातें सुनने में अच्छी लगती है और हकीकत में बदल जाएँ तो और भी अच्छी लगती है।
अमर सिंह ने भी एक सबसे बढ़िया बात की। उन्होंने कहाँ हम हर गाँव में कंप्यूटर और इंग्लिश के एक्सपर्ट लेकर जायेंगे जो दुसरे टीचर्स को एजुकेट करेंगे। बाबु अमर सिंह देर आयद दुरुस्त आयद। आपने बहू राजनीती कर ली अब समाजनीति करिए तभी आप पूर्वांचल और क्षत्रिय समाज का क़र्ज़ उतर पाएंगे, और समाज का भी भला हो जायेंगा। आपने देखा जब आप मुश्किल में फंसे और इज्जत दाँव पर लगी तो आपका वही सगा भाई अरविन्द सिंह आपके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर आपके सम्मान के लिए खड़ा हो गया जो आपसे किन्ही कारणों से दूर हो गया था। अब आप समझ गए होंगे अगर आप क्षत्रिय समाज और पूर्वांचल के साथ होंगे तो ये लोग भी आपका पूरा साथ देंगे।
महासभा के यू पी अध्यक्ष बाबा हरदेव सिंह जो अच्छे प्रशासनिक अधिकारीयों में गिने जाते है, ने समाज को जोड़ने की जो रुपरेखा बताई ओ काफी सफल होगी अगर उसपर अमल होता है तो। उनहोंने परिवार से लेकर गाँव, न्याय पंचायत, ब्लाक, तहसील, जिला स्तर पर क्षत्रियो को मजबूत करने की रुपरेखा बताई। समाज के लिए काफी महत्वपर्ण होंगे।
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुंवर हरिवंश सिंह ने जो कार्य योजना बताई, अगर ओ अमल में आ गई तो समाज के हर वर्ग का कल्याण होगा। उन्होंने विकास के लिए गाँव को केंद्र बिंदु बनाने की बात कही, अगर ऐसा हो जाता है तो गाँव का, किसान का कल्याण हो जायेगा। पूर्वांचल के लोगो को मुंबई, दिल्ली की ठोकरे और लानते नहीं सहनी होगी। गर्व के साथ सभी अपनी जन्मभूमि के साथ जुड़े रहेंगे। हरिवंश सिंह ने इस बात का आश्वासन दिया की मुंबई के डॉक्टर जौनपुर में आकर इलाज करेंगे। ये अच्छी बात है। उन्होंने कहाँ क्षत्रिय दहेज़ ना ले, घर में वर्किंग (जो नौकरी भी कर सके यानि पढ़ी-लिखी हो) बहू लायें, सामूहिक शादी करे ताकि फालतू खर्च से बचा जा सके। उन्होंने रोजगारपरक शिक्षा की वकालत की। ये बातें सुनने में अच्छी लगती है और हकीकत में बदल जाएँ तो और भी अच्छी लगती है।
अमर सिंह ने भी एक सबसे बढ़िया बात की। उन्होंने कहाँ हम हर गाँव में कंप्यूटर और इंग्लिश के एक्सपर्ट लेकर जायेंगे जो दुसरे टीचर्स को एजुकेट करेंगे। बाबु अमर सिंह देर आयद दुरुस्त आयद। आपने बहू राजनीती कर ली अब समाजनीति करिए तभी आप पूर्वांचल और क्षत्रिय समाज का क़र्ज़ उतर पाएंगे, और समाज का भी भला हो जायेंगा। आपने देखा जब आप मुश्किल में फंसे और इज्जत दाँव पर लगी तो आपका वही सगा भाई अरविन्द सिंह आपके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर आपके सम्मान के लिए खड़ा हो गया जो आपसे किन्ही कारणों से दूर हो गया था। अब आप समझ गए होंगे अगर आप क्षत्रिय समाज और पूर्वांचल के साथ होंगे तो ये लोग भी आपका पूरा साथ देंगे।
महासभा के यू पी अध्यक्ष बाबा हरदेव सिंह जो अच्छे प्रशासनिक अधिकारीयों में गिने जाते है, ने समाज को जोड़ने की जो रुपरेखा बताई ओ काफी सफल होगी अगर उसपर अमल होता है तो। उनहोंने परिवार से लेकर गाँव, न्याय पंचायत, ब्लाक, तहसील, जिला स्तर पर क्षत्रियो को मजबूत करने की रुपरेखा बताई। समाज के लिए काफी महत्वपर्ण होंगे।
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