बुधवार, 7 अप्रैल 2010

सच्ची ज़िन्दगी

ज़िन्दगी तो सभी जीते हैं इस दुनिया में,
पर कोई जीता है ऐसे कि जैसे
दुनिया जीती है उसके लिए।
मर गए भी तो गम नहीं कि
ज़िन्दगी तो सबको दी,
चाहे ज़िन्दगी अपनी ना रही,
पार दी ज़िन्दगी सबको हमने ही।
अपने को चाहे दुःख में डूबा दिया,
लेकिन सबके दुखों को मिटा तो दिया।
जीना तो तभी एक जीना है,
जो जिया यहाँ पर सबके लिए।

गम न कर ऐ राहे नज़र,
गम तो आते है हम सब पर,
कोई गम को पी जाता है,
किसी को गम ही पी जाता है।

राह कोई मुश्किल है नहीं,
अगर राही में जूझने कि शक्ति है,
ज़ख्म कोई गहरा है नहीं,
दर्द से लड़ने कि हिम्मत जिसमे है।
दुनिया से अगर सुख लेना है,
अपनों को अगर कुछ देना है,
ज़िन्दगी से कभी मत तुम हारो,
सबके दुखों को खुद टारो।
हंसना तो सभी को आता है,
सुख तो सबको ही भाता है,
क्या प्यार जताना भी आता है?
क्या दर्द मिटाना आता है?

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है...........

जय हिंद!

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

"शहीद की मंजिल"

हम चले थे साथ मंजिल पाने के लिए,
राह लम्बी थी हमारी, रास्ता भी कठिन
लेकिन दिल में थी आशा, होठों पे मुस्कान,
दर्द न था परेशानियों का, दुःख भी भूल गए।
मन में थी लगन, इच्छा थी कुछ कर दिखाने की।
मंजिल के करीब आने की ख़ुशी थी सबको,
पर मेरे मन में थी आशंका, कोई छूट न जाये।
दर्द न था कठिनाइयों का मन में लेकिन
भय था सबके लिए की कोई बिछड़ ना जाये,
पर था अडिग मैं राह की चुनौतियों के लिए,
लाख आये क्यों न मुसीबतें, झेलूँगा अकेले।
घिरने ना दूंगा किसी को कष्ट के भंवर में,
आखिर हैं तो अपने ही, चले भी थे साथ ही,
मंजिल भी एक है, रास्ता भी एक है।
कठिनाइयाँ थी मुह बाये खड़े, खाने को तत्पर,
पर मैं था दृढ झेलने को सबको।
कुछ तो निकल गए, अपना रास्ता बना के,
कुछ को निकाला मैंने, रास्ता बता के,
सब निकल गए आगे मंजिल पर,
मैं था पीछे मुसीबतों से ढक कर।
मुझे गम नहीं की आगे निकल गए सब,
पर एक भय है कि क्या उनको मंजिल मिलेगी?
क्या वे पार कर पाएंगे, रास्ते के अंधियारों को?
क्या फिर वे रास्ता निकालेंगे? कि
फिर उनको कोई "मैं" मिलेगा रास्ता सुझाने को।

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.............

जय हिंद!

रविवार, 4 अप्रैल 2010

दुःख-दर्द की दुनिया

माँ की ममता माँ ही जाने और ना जाने कोई।
दुनिया सब कुछ देख रही है, लेकिन फिर भी सोई॥

दर्द ना जाने कोई मन का, प्यार बिना सब सूखा।
पाने की लालसा है सबको, पर कोई है भूखा॥

अपने दुःख को दुःख वे समझें, दूजा कोई ना प्यासा।
दुःख ही दुःख है इस दुनिया में, लेकिन कुछ है आशा॥

दुःख में डूबे खुद ही रहना, है ये सबसे अच्छा।
अपने को सोचो तुम ऐसे, जैसे सब है सच्चा॥

अपना हित ही सबका हित है, ऐसा कभी ना करना।
चोटिल हैं सब इस दुनिया में, सबके घाव को भरना॥

दर्द का सागर है ये दुनिया, सुख है एक मोती के जैसे।
संबल एक पतवार है इसमें, राह मिले फिर कैसे॥

मन तो माटी का है पुतला, सांचो चाहे जिसमे।
प्यार अगर मिल जाये इसको, दुःख काहे का आये इसमें॥

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है..........

जय हिंद!

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

सांसारिक मोह!

अगर तुम हमको मिले होते,
तो ख़ुशी हमको कितनी होती।
जीवन के इस मंझधार में,
ज़िन्दगी कभी यूँ ना रोती॥

राह में हमने सदा,
दुःख को ही अपना बनाया।
जो मिला हमें प्यार से,
उसको गले हमने लगाया॥

ज़िन्दगी ने हर मोड़ पे,
हमको कुछ हरदम सिखाया।
गर्व को तोडा हमेशा,
अपनों से सबको मिलाया॥

दुःख ने है जिसको सताया,
प्यार भी उसने है पाया।
प्रेम एक मीठा ज़हर है,
दर्द को इसने हराया॥

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है........

जय हिंद!

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

ज़िन्दगी का अर्थ

ज़िन्दगी तो चार दिनों की मेहमान है,
यहाँ आना और आके चले जाना सबका काम है।
जो ज़िन्दगी को जीता है,
खुशियों को देता है,
सबको हंसाता है, और
हंसा के चला जाता है,
उस ज़िन्दगी को लोग कहते महान है,
ये ज़िन्दगी तो चार दिनों की मेहमान है।
ज़िन्दगी की जियो तुम शान से,
मुस्कान लो कलियों की मुस्कान से।
ज़िन्दगी तो खुशियों की हर खान है,
खुशियाँ तो ज़िन्दगी की रसपान हैं।

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........

जय हिंद!