बुधवार, 29 सितंबर 2010

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा....


सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं उसकी ये गुलसिताँ हमारा

ग़ुरबत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा
...
पर्बत वो सब से ऊँचा हमसाया आसमाँ का
वो सन्तरी हमारा वो पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिस के दम से रश्क-ए-जिनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा, वो दिन है याद तुझ को
उतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा

'इक़बाल' कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा

(शायर इकबाल द्वारा रचित)

ज़रा याद करो क़ुरबानी....


मेरे प्रिय सह नागरिको, देश हित केवल नारे लगाने से या शहीदों के जन्मदिन के उपलक्ष्य में कुछ एक टिप्पड़ियाँ लिखने से नहीं होता. आवश्यकता नहीं है हमें की हम एक दिन जोश में आकर अच्छी तरह से देश प्रेम की बातें जोश और जज्बे से करें. आवश्यकता है -... इन शहीदों के सपनों को समझने की ? ये समझने की उन्होंने स्व-बलिदान देने की बात हमारे देश को किस हाल में देखने के लिए सोची ? क्या उनके हृदय और मस्तष्क में आज के भारत की ही तस्वीर थी ? अगर नहीं -तो किस स्वाधीन भारत का सपना देखा था उन अमर शहीदों ने ? और अगर हम उनके सपने साकार नहीं कर पा रहें है, कारण चाहे जो भी हो, तो ये उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि नहीं हो सकती. एक दिन के लिए जोश में आकर हम सब यहाँ कमेंट्स कर रहे हैं और कल हम फिर भूल जायेंगे. और फिर जब किसी और की पुण्यतिथि आएगी तो फिर हम जाग जायेंगे और कमेंट्स करेंगे. जरुरत है की जिस तरह उस समय सभी एक जुट होकर देश हित की बात कर रहे थे, स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने की सोच रहे थे, अब हम सबको सोचना चाहिए. उस वक्त में और आज के वक्त में सिर्फ एक ही बदलाव है- की आज हम फेसबुक पर कमेंट्स कर रहे हैं उस समय नहीं होती थी ये सुविधाएं, भारत उस समय अंग्रेजों के चंगुल में था, तो आज कुछ भ्रस्टाचार, बदहाली, भुखमरी, गरीबी और लाचारी के चंगुल में है. उस समय हम कुछ एक चुनिन्दा मुट्ठी भर लोगों की हुकूमत में थे, आज हम सब दूषित राजनीति की, धर्मवाद, परिवारवाद की राजनीति की हुकूमत में है. स्थिति वैसी ही है जैसी तब थी, कमी सिर्फ भगत सिंह, आजाद, नेता जी, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल आदि जैसे लोगों की है, क्यों की उस वक्त इन शहीदों ने समझ लिया था की करना क्या है देश के लिए, और हमें आज तक हमारा मकसद नहीं मिल रहा.

THERE IS A PROVERB IN ENGLISH- "FIND THE PURPOSE, MEANS WILL FIND THE WAYS"

तो मेरा तो हम सब से एक ही आग्रह है - कि इन शहीदों के कहे हुए वाक्य दोहराने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है उनके अधूरे सपने को पूरा करने की, वो सपना जिसे वो अपनी आँखों में लेकर ही चले गए. हमारी सच्ची श्रद्धांजलि वही होगी उनके लिए,
अश्रुपूरित नेत्रों से भावभीनी श्रद्धांजलि आपको भगत सिंह जी,

आशान्वित हूँ कि मैंने किसी के भावों को ठेस नहीं पहुंचाई होगी, और यदि किसी को पहुँची हो, तो कृपया क्षमा कर दें

आदित्य कुमार
सहयोगी, आजाद हिंद मंच

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

यूपी में पंचायत चुनाव....


यूपी में पंचायत चुनाव हो रहे हैं...पंचायतीराज व्यवस्था लोकतंत्र की रीढ़ मानी जाती है...सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो रहा है...क्या ये सत्ता सही हाथों में जायेगी...??