सोमवार, 29 मार्च 2010

इज्ज़त

जिनसे मिलते ही सर झुक जाता है,
जिनके सामने गर्व भी टूट जाता है,
जिनसे जीने का संबल है मुझको मिला,
जिसने दूर किया अपना सब गिला,
मन करता है हम भी उनको कुछ दे दें।
लेकिन फिर सोचते हैं...
जिनसे है हमने सब कुछ लिया,
जिन्होंने दामन को खुशियों से भर दिया,
क्या हमने भी उनको है कुछ भी दिया?

ज़िन्दगी के भंवर में हम तो फंस गए थे,
मन में था गम और आँखों में आंसू थे।
कुछ सिरफिरों ने लूट लिया अरमानों की डोली को,
फिर ज़िन्दगी में भर दिया विषादों के हमजोली को।

अगर ज़िन्दगी को जीना है,
तो फिर आंसू भी पीना है।
इज्ज़त हम उन्ही को देते हैं,
जो हमें अपना समझते हैं।

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है............
जय हिंद!

1 टिप्पणी:

  1. अगर ज़िन्दगी को जीना है,
    तो फिर आंसू भी पीना है।
    इज्ज़त हम उन्ही को देते हैं,
    जो हमें अपना समझते हैं।

    bahut achi kavita he bhai saheb
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    http://kavyawani.blogspot.com

    shekhar kumawat

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