बुधवार, 17 मार्च 2010

जलती मशाल!

हम जन्मे भी थे अकेले, मरकर जायेंगे भी अकेले।
ज़िन्दगी में ना कुछ अपना लाये थे, ना कुछ अपना हम ले जायेंगे।।
दुनिया में ना कोई अपना है, कुछ भी सोचना बस एक सपना है।
कुछ सोचना बस एक आस है, ज़िन्दगी में सिर्फ प्यास है।
हमने तो सबको ख़ुशी ही दिया, लोगों के आंसू को हमने पिया।
ज़िन्दगी को हमने रो-रो के जिया, फिर हमने कुछ ना किया।।
सुख की चाह में दुःख को झेलते रहे, फिर भी हमें ज़िन्दगी में अपने ना मिले।

अपनों को जो अपना समझते है,
ज़िन्दगी में उन्हें दुःख ही दुःख मिलते हैं।
मन की आँखों से देखो, सब सच्चाई दिख जाएगी।
लेकिन हकीक़त में कुछ नहीं सामने आयेगी॥
अपने के अन्दर का अपना, सिर्फ अपना है।
दूसरों का अपना, सिर्फ एक सपना है॥
पथ के राही बस साथ-साथ चलते हैं,
मंजिल के मिलने पर, फिर नहीं मिलते हैं।
जो दूसरों के कंधे पर सर रखकर सोते हैं,
ज़िन्दगी में वे अपना सब कुछ खो देते हैं।
ज़िन्दगी में दूसरों को, अपना समझने की भूल ना करो,
स्वयं को अपना सहारा बनाने की बस कोशिश करो।
किसी से कुछ पाने की कभी चाह ना करो,
अपनी अन्दर की शक्ति पर केवल अभिमान करो॥
ना तो कोई कभी अपना होता है,
जो तुम चाहते हो, वो कभी नहीं होता है।

अपनी शक्ति की तुलना, अपनी मन की तुला से करो,
ज़िन्दगी में लगे घावों को भूल के क्षमा करो॥

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........
जय हिंद....

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