सोमवार, 29 मार्च 2010

इज्ज़त

जिनसे मिलते ही सर झुक जाता है,
जिनके सामने गर्व भी टूट जाता है,
जिनसे जीने का संबल है मुझको मिला,
जिसने दूर किया अपना सब गिला,
मन करता है हम भी उनको कुछ दे दें।
लेकिन फिर सोचते हैं...
जिनसे है हमने सब कुछ लिया,
जिन्होंने दामन को खुशियों से भर दिया,
क्या हमने भी उनको है कुछ भी दिया?

ज़िन्दगी के भंवर में हम तो फंस गए थे,
मन में था गम और आँखों में आंसू थे।
कुछ सिरफिरों ने लूट लिया अरमानों की डोली को,
फिर ज़िन्दगी में भर दिया विषादों के हमजोली को।

अगर ज़िन्दगी को जीना है,
तो फिर आंसू भी पीना है।
इज्ज़त हम उन्ही को देते हैं,
जो हमें अपना समझते हैं।

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है............
जय हिंद!

रविवार, 21 मार्च 2010

माँ और मातृभूमि

नमन करो तुम उस भारत को, जिस पर तुमने जन्म लिया।
नमन करो तुम उस जननी को, जिसने तुम्हे है जन्म दिया॥

करो प्रतिज्ञा की हम, भारत माँ की लाज बचायेंगे।
जिस जननी ने जन्म दिया, नित उसको शीश नवायेंगे॥

भारत माँ की आन की खातिर, हम अपना शीश कटा देंगे।
माँ की ममता की खातिर, हम अपनी बलि चढ़ा देंगे॥

भारत माँ की खोई गौरव को हम वापिस लायेंगे।
माँ की दूध की खातिर, हम अपना धरम निभाएंगे॥

हम-तुम भी इस देश की खातिर, अपनी जान लड़ा देंगे।
जिस माँ ने हमको जन्म दिया, उस माँ का क़र्ज़ चुका देंगे॥

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........

जय हिंद!

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

हिंदी, हिंद का गौरव

जिस धरती पर जन्म लिया, उस धरती का तुम मान करो।
जिस भाषा ने ज्ञान दिया, उस भाषा का सम्मान करो॥

जिस धरती पर संस्कृति का, सबसे पहले विकास हुआ।
क्या उस धरती पर ही, उनकी भाषा का है अब ह्रास हुआ॥

जिस भाषा से गाँधी ने था, जन-जन का आह्वान किया।
जिस भाषा को संविधान ने भी था सम्मान दिया॥

उस भाषा के निज गौरव पर, तुम भी अब अभिमान करो
उस भाषा के स्वाभिमान को, वापिस लाने का फिर तुम अब अधिष्ठान करो॥

भारत माँ के चरणों में, हम नित-नित शीश नवायेंगे।
भाषा के खोये गौरव को, हम फिर वापिस लायेंगे॥

जिस भाषा ने आज तक दिया था सबको ज्ञान।
उस भाषा का आज फिर धरना हमको ध्यान॥

जिस पश्चिम के देश ने था हमको भी गुलाम किया।
उस पश्चिम की भाषा पर क्या तुमने है अब आस किया?

जिस भूमि पर सत्य ही सदा रहा सगुण सर्वेश।
उस भाषा का एक ही प्रेम है निर्गुण सन्देश॥

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........

जय हिंद........

बुधवार, 17 मार्च 2010

जलती मशाल!

हम जन्मे भी थे अकेले, मरकर जायेंगे भी अकेले।
ज़िन्दगी में ना कुछ अपना लाये थे, ना कुछ अपना हम ले जायेंगे।।
दुनिया में ना कोई अपना है, कुछ भी सोचना बस एक सपना है।
कुछ सोचना बस एक आस है, ज़िन्दगी में सिर्फ प्यास है।
हमने तो सबको ख़ुशी ही दिया, लोगों के आंसू को हमने पिया।
ज़िन्दगी को हमने रो-रो के जिया, फिर हमने कुछ ना किया।।
सुख की चाह में दुःख को झेलते रहे, फिर भी हमें ज़िन्दगी में अपने ना मिले।

अपनों को जो अपना समझते है,
ज़िन्दगी में उन्हें दुःख ही दुःख मिलते हैं।
मन की आँखों से देखो, सब सच्चाई दिख जाएगी।
लेकिन हकीक़त में कुछ नहीं सामने आयेगी॥
अपने के अन्दर का अपना, सिर्फ अपना है।
दूसरों का अपना, सिर्फ एक सपना है॥
पथ के राही बस साथ-साथ चलते हैं,
मंजिल के मिलने पर, फिर नहीं मिलते हैं।
जो दूसरों के कंधे पर सर रखकर सोते हैं,
ज़िन्दगी में वे अपना सब कुछ खो देते हैं।
ज़िन्दगी में दूसरों को, अपना समझने की भूल ना करो,
स्वयं को अपना सहारा बनाने की बस कोशिश करो।
किसी से कुछ पाने की कभी चाह ना करो,
अपनी अन्दर की शक्ति पर केवल अभिमान करो॥
ना तो कोई कभी अपना होता है,
जो तुम चाहते हो, वो कभी नहीं होता है।

अपनी शक्ति की तुलना, अपनी मन की तुला से करो,
ज़िन्दगी में लगे घावों को भूल के क्षमा करो॥

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है.........
जय हिंद....