रविवार, 4 अप्रैल 2010

दुःख-दर्द की दुनिया

माँ की ममता माँ ही जाने और ना जाने कोई।
दुनिया सब कुछ देख रही है, लेकिन फिर भी सोई॥

दर्द ना जाने कोई मन का, प्यार बिना सब सूखा।
पाने की लालसा है सबको, पर कोई है भूखा॥

अपने दुःख को दुःख वे समझें, दूजा कोई ना प्यासा।
दुःख ही दुःख है इस दुनिया में, लेकिन कुछ है आशा॥

दुःख में डूबे खुद ही रहना, है ये सबसे अच्छा।
अपने को सोचो तुम ऐसे, जैसे सब है सच्चा॥

अपना हित ही सबका हित है, ऐसा कभी ना करना।
चोटिल हैं सब इस दुनिया में, सबके घाव को भरना॥

दर्द का सागर है ये दुनिया, सुख है एक मोती के जैसे।
संबल एक पतवार है इसमें, राह मिले फिर कैसे॥

मन तो माटी का है पुतला, सांचो चाहे जिसमे।
प्यार अगर मिल जाये इसको, दुःख काहे का आये इसमें॥

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है..........

जय हिंद!

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