बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

गांव की विरासत और रोजगार

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Ðâ ìê£UÚ!

रविवार, 22 फ़रवरी 2009

"गाँव को क्यों भुला दिया"

देश की ७० फीसदी से ज्यादा जनता गाँव में रहती है और कृषि पर निर्भर है। इसके बावजूद न तो सरकार को इसकी चिंता और ना ही देश के उस उस एलीट(संभ्रांत) वर्ग को जो कहीं न कहीं गाँव से जुडा है। यहाँ तक की ये वर्ग अपने गाँव से अपनी जड़ों को काट चुका है। मैं जब भी किसी से मिलता हूँ तो मेरा सबसे पहला सवाल होता है आप कहाँ के रहने वाले हो, आपका गाँव कहाँ है (शायद ये मेरी एक कमजोरी है। इस पर कुछ लोगों का कमेन्ट होता है की मुझे तो जनगणना अधिकारी होना चाहिए।) मैंने देखा है लोग अपने आपको किसी गाँव से होने का बताने में शरमाते हैं। दिल्ली जैसे शहर में मिलने पर तो वो अपने आपको दिल्लीवाला ही बताते हैं। मैं इतिहास का छात्र रहा हूँ इस नाते जानता हूँ कि दिल्ली एक बसाया हुआ शहर है, यहाँ लोग रोजगार के लिए आते रहे और शहर का विस्तार होता गया। आज के हर छोटे-बड़े शहर का यही हाल है। यहाँ काम (मजदूरी) के लिए आने वाले लोग गाँव से ही आते हैं। गाँव में काम करने में इन्हें शर्म आती है लेकिन यहाँ पर नारकीय जीवन जीते हुए अन्याय, अत्याचार मंजूर है।

गलती इनकी भी नहीं है। सरकार अगर इन्हें गाँव में ही रोजगार मुहैया करा दे तो शायद इन्हें शहर का मुह न देखना पड़े। अगर सरकार कृषि पर और किसानों पर ध्यान दे दे तो शायद देश की बहुत बड़ी और कई समस्यायें जड़ से ख़त्म हो जाएंगी। और देश की ७० फीसदी आबादी जब तक खुशहाल नहीं होगी तब तक वास्तविक मायने में देश विकास नहीं कर पायेगा। बहुत ज्यादा दिन तक इनकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती है।

अगर गाँव में कुछ मूलभूत सुविधाए मुहैया करा दी जाय, जैसे-सड़क, बिजली, शिक्षा, हॉस्पिटल, पानी(सिंचाई), तो शायद एक बहुत बड़ा तबका शहर की तरफ़ पलायन करना छोड़ दे। और ये पलायन रुक जाय तो शायद शहर को भी बहुत सारी समस्याओ से मुक्ति मिल जायेगी। शहर से शायद वो स्लम एरिया ख़त्म हो जाए, जिसके कारण एक विदेशी को स्लमडॉग मिलेनियर फिल्म बनाने की जरूरत पड़ गई। शायद फिर कोई इन्हें डॉग के रूप में सम्मानित न करे। अपने घर से दूर रहने की टीस जो मन में होती है शायद वो भी ख़त्म हो जाए।

अब बात उनकी जो कहीं ना कहीं गाँव से जुड़े हुए हैं। ये अब कहने भर को गाँव से जुड़े हुए हैं। अगर किसी खास सम्बन्धी के यहाँ शादी पड़ जाय(वैसे अब लोग शादी भी शहर से ही कर रहे हैं) तो शायद सम्बन्ध निभाने के नाम पर शादी वाले दिन गाँव पहुँच जाय तो बड़ी बात है। ऐसे लोगों ने अपने विकास(पढ़ाई, नौकरी) के लिए उर्जा, खाद, पानी तो गाँव से ली, लेकिन जब उन्हें गाँव को कुछ देने, करने की बारी आई तो वो गाँव छोड़कर ही फरार हो गए। पूछो तो कहेंगे गाँव में बड़ी राजनीति है। अरे भाई वो गाँव तो आपका ही है ना। राजनीति तो आपके देश में भी बहुत हो रही है तो क्या आप अपने देश को छोड़ देंगे। जब देश नहीं छोड़ सकते तो गाँव क्यों?

गाँव से निकले ये लोग आज बाहर अच्छे पदों पर हैं, निर्णायक जगहों पर हैं। लेकिन उनके ज्ञान और शक्ति (पॉवर, पैसा)
का कोई फायदा गाँव को नहीं मिल पा रहा है, इसलिए गाँव अभी भी पिछडा हुआ है। गाँव में अभी भी शिक्षा का बहुत अभाव है जिसके कारण लोग सरकार की उन नीतियों का फायदा नहीं उठा पाते जो उनके लिए बनाई गई हैं। गाँव में भी विकास की योजनाए राजनीति का शिकार हो जाती हैं। लोग अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए गाँव के विकास को रोकने का काम करते हैं। और ये सब होता है केवल शिक्षा और समझ के अभाव में, जिसे दूर कर सकता है हमारा वो तबका जो शिक्षित और समर्थ है।

जय हिंद!


शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

"युवा शक्ति, राष्ट्र शक्ति"

कहते है युवा शक्ति राष्ट्र शक्ति होती है, ये देश को दिशा देने का काम करती है। लेकिन आज की युवा शक्ति कहाँ जा रही है, उसकी सोच कैसी है। इससे आप अनुमान लगा सकते है की देश की दशा और दिशा कैसी होगी। मैं छात्र राजनीति से जुडा रहा हूँ, मैंने देखी है छात्र शक्ति। हम नारा देते थे "छात्र शक्ति, राष्ट्र शक्ति"। "जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है"। "आवाज़ दो, हम एक हैं"। "हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है"। मैंने उनका जूनून देखा है, वो जंग देखी है, जिसमे एक नारे पर छात्र सड़क पर उतर जाते थे। यही है वो युवा शक्ति जिसे राष्ट्र शक्ति कहते है।

लेकिन इस शक्ति का उपयोग हो रहा है या दुरुपयोग, इस पर गौर करना होगा। युवा शक्ति उस बाँध के पानी की तरह है, जिसे खुला छोड़ दिया जाय तो तबाही मचा दे, बाढ़ की विनाशलीला की तरह। जैसा कोसी ने बिहार में किया। लेकिन अगर इसको रोककर यानी बाँध बनाकर जैसा रिहंद बाँध, भाखडा नांगल बाँध बनाकर किया गया, तो हम बाढ़ की विनाशलीला से बच सकते है, नहर निकालकर सिचाई कर सकते है, बिजली बना सकते है, मछली पालन कर सकते है, पर्यटन का रूप दे सकते है। यही हाल युवा शक्ति का है। अगर हम खुला छोड़ देंगे तो दंगे-फसाद होंगे, लूटमार होगी, अत्याचार होगा, हत्या और अपहरण होंगे। आप ख़ुद अंदाजा लगा सकते है स्वछन्द होकर ये शक्ति क्या-क्या कर सकती है। लेकिन इसी शक्ति का उपयोग किया जाय तो कितने फयदे हो सकते है। सबसे पहला फायदा तो यही होगा की हम इन सारी विनाशलीलाओ से बच जायेंगे अपितु इससे तमाम फायदे होंगे जो देश के विकास में अहम् योगदान देंगे।

इस ताकत को राजनीतिक दल समझते है तभी तो हर दल अपना यूथ विंग बनाते है जो उनकी रैलियों के लिए भीड़ जुटाते हैं, मोर्चा निकालते हैं, प्रदर्शन करते हैं, लाठी-गोली खाते हैं। लेकिन जब चुनाव में टिकट देने कि बारी आती है तो बुजुर्ग(घाघ) नेताओ को टिकट मिल जाता है और आम आदमी के हक-हकूक कि लडाई लड़ने वाली युवा शक्ति को दरकिनार कर दिया जाता है। ये दल यूथ विंग के साथ स्टुडेंट विंग भी बनाती है ताकि कॉलेज-यूनिवर्सिटी से थोक में इन्हे जुनूनी भीड़ मिल सके जो इनके थोथे नारों पर कट मरे। ऐसा कब तक होता रहेगा, हम कब तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे। ये स्वार्थी नेता, ये सिद्धान्तहीन दल कब तक अपने कुत्सित इरादों को पूरा करने के लिए इस युवा शक्ति को माध्यम बनाते रहेंगे।

ये शक्ति अगर सामाजिक कुरीतियों, विघटनकारी तत्वों के पीछे पड़ जाय तो वो क्या दिखाई देंगी। आप बदलाव की अपेक्षा किस से करेंगे जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी इस ग़लत सिस्टम का हिस्सा बनकर गुजार दिया या उनसे जिनमे ताकत है, हिम्मत है, जज्बा है, जूनून है। जो अपने फौलादी इरादों से कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत रखते है। बड़े-बुजुर्गो से हम केवल सलाह लेने और अनुभव बांटने का काम कर सकते है। इन लोगो से बदलाव की अपेक्षा नही करनी चाहिए। मुझे खुरशीद का वो शेर याद आ रहा है कि-

"क्या यही दर्द है खुरशीद हमारे दिल में, घर जला भाई का और उठके बुझाया न गया"

और ये आग बुझाने का काम केवल युवा शक्ति ही कर सकती है।

जय हिंद !

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

अधिकार हमारा, कर्तव्य आपका

लोकतंत्र में सबको बराबर का अधिकार है। चाहे वो गरीब हो, अमीर हो, राजा हो फकीर हो। अगर अधिकार बराबर है तो कर्तव्य भी बराबर है। वर्णमाला में पहला स्वर होता है अ, यानी अधिकार। और पहला व्यंजन होता है क यानी कर्तव्य। तो जितना महत्व अधिकार का है उतना ही महत्व कर्तव्य का भी है। हमारा अधिकार अगर मजबूत लोकतंत्र पाने का है, अच्छा नेता पाने का है, बढ़िया सरकार पाने का है तो हमें वैसे ही कर्तव्य भी निभाने पड़ेंगे। लेकिन आज स्थिति इसके विपरीत है। हमें अपने अधिकारों की तो चिंता है लेकिन कर्तव्यों की कोई चिंता नही है। और अपेक्षा है की नेता सुधर जाय, अधिकारी ठीक काम करे, सरकार बढ़िया हो। अगर हमें सब बढ़िया चाहिए तो सब बढ़िया करना पड़ेगा।

जो तबका अपने आपको सबसे सुशिक्षित, समझदार, योग्य समझता है, चुनाव के दौरान खूब बहस करता है, वही चुनाव के दिन बूथ पर वोट डालने नही जाता। जिसका रिजल्ट निकलता है गलत उम्मीदवार की जीत के रूप में। चुनाव का वोटिंग प्रतिशत करीब ५० फीसदी होता है यानी आधे लोग जीते उम्मीदवार को पसंद नही करते, अगर यही तबका वोट करने जाता तो स्थिति कुछ और होती। ये लोग इस बात का रोना रोते है की उम्मीदवार ही बढ़िया नही होते तो भाई जो बढ़िया है उसे मैदान में लाओ, और अगर आप अपने को बढ़िया मानते हो तो ख़ुद मैदान में उतर जाओ। क्रांति हमेशा खून मांगती है, आप खून मत दो लेकिन अपनी छोटी-छोटी जिम्मेदारियों से तो मत भागो।

निगाहे मरदे मोमिन से बदल जाती है तकदीरे,
जो हो जौके यकीन पैदा तो कट जाती है जंजीरे।

यकीन मानिये अगर आप हिम्मत कर खड़े हो गए तो तस्वीर कुछ और होगी। हम चाहते है कि बदलाव हो लेकिन शुरुआत हम न करे , तो भाई बनी बनाई खिचडी खाने का आप इंतजार करो मैं तो बागी बन चुका हू अपने तरीके से लड़ने में लगा हू। क्योंकि मैं मानता हू-

तेरे लहू से सीचा, है अनाज हमने खाया,
ये जज्बा-ऐ-शहादत है उसी से हममे आया।

जय हिंद!

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

आदर्श बनना (बनाना) पड़ेगा

जब हम जन्मे जगत में जग हंसा हम रोये,
ऐसी करनी कर चलें हम हँसे जग रोये।

मेरी ज़िन्दगी का यही फलसफा है, इसको मैं कितना पूरा कर पाउँगा ये तो वक्त ही बताएगा। जब से मैंने होश संभाला है, दुनियादारी समझनी शुरू की तब से मैंने हमेशा दूसरों के बारे में, समाज के लिए कुछ करने के लिए हमेशा उद्दत रहा। लेकिन कई बार निराशा भी मिली क्योंकि-

दुनिया को मोह नही डूबते सितारों से,
प्यार नही एक से, दिखावा हजारो से

दुनिया की यही रीती है। इस रीती को बनाया किसने ये बहस का मुद्दा हो सकता है। लेकिन हमारा फ़र्ज़ क्या बनता है। हमारा फ़र्ज़ है एक आदर्श स्थापित करने की। इसके लिए हमें दूसरे का मुह नही देखना चाहिए, पहल जरूरी है, रास्ता तो अपने आप बन जाएगा।

जिस ओर जवानी चलती है,
उस ओर ज़माना चलता है।

इसके उदहारण है चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, अशफाक उल्लाह खान, रामप्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु, जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में अहम् भूमिका निभाई और एक मिसाल कायम की, ऐसे महावीरों को हमारा नमन, आजाद हिंद मंच का नमन।

जय हिंद!