पत्रकार दूसरों के हक के लिए लड़ता है, लेकिन उसका हक जब मारा जाता है, तो अपने बात कही नहीं कह पता। उसके साथ मजदूरों जैसा व्यवहार किया जाता है, दिहाड़ी भी टाइम से नहीं मिलती, उसमे भी कभी भी कटौती कर ली जाती है। उस पर कारन पूछ लिया जाय तो नियोक्ता chhutti करने की धमकी देता है। मजदूरों की तो सरकार ने भी मजदूरी तय कर दी है, लेकिन पत्रकारों का कोई वेतन तय नहीं है। जितने में बारगेनिंग हो जाय।
तमाम प्रेस संगठन बने हुए हैं, प्रेस क्लब भी दिल्ली में बना हुआ है, लेकिन लगता है ये केवल शराब का अड्डा बन कर रह गया है, जहाँ शाम को स्वनाम धन्य पत्रकार अपना गम गाफिल करते हैं। पत्रकारिता में शराब और कुछ चीज़ों जिसकी सार्वजनिक चर्चा करना उचित नहीं है, जैसे ज़रूरी हो गई हैं। ये लोग इस पर अपना सर्वाधिकार समझाते हैं, और कुछ पत्रकार तो इसका बड़े गर्व के साथ इसकी विवेचना करते हैं। लोगों के बीच में ये बताते घूमते हैं की फलां पत्रकार ऐसे करता है, वैसे करता है आदि।
भाई गिरावट हर जगह आई है, लेकिन आप के ऊपर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है इसलिए लोगों की उम्मीदें आपसे बहुत ज्यादा हैं। जारी है.........
सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंamit thakur said. sahi kaha apne dusro ki ladai ladne wala patrakar apni ladai harne ko majboor ho jata hai
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