बुधवार, 7 अप्रैल 2010

सच्ची ज़िन्दगी

ज़िन्दगी तो सभी जीते हैं इस दुनिया में,
पर कोई जीता है ऐसे कि जैसे
दुनिया जीती है उसके लिए।
मर गए भी तो गम नहीं कि
ज़िन्दगी तो सबको दी,
चाहे ज़िन्दगी अपनी ना रही,
पार दी ज़िन्दगी सबको हमने ही।
अपने को चाहे दुःख में डूबा दिया,
लेकिन सबके दुखों को मिटा तो दिया।
जीना तो तभी एक जीना है,
जो जिया यहाँ पर सबके लिए।

गम न कर ऐ राहे नज़र,
गम तो आते है हम सब पर,
कोई गम को पी जाता है,
किसी को गम ही पी जाता है।

राह कोई मुश्किल है नहीं,
अगर राही में जूझने कि शक्ति है,
ज़ख्म कोई गहरा है नहीं,
दर्द से लड़ने कि हिम्मत जिसमे है।
दुनिया से अगर सुख लेना है,
अपनों को अगर कुछ देना है,
ज़िन्दगी से कभी मत तुम हारो,
सबके दुखों को खुद टारो।
हंसना तो सभी को आता है,
सुख तो सबको ही भाता है,
क्या प्यार जताना भी आता है?
क्या दर्द मिटाना आता है?

(डेढ़ दशक पहले के भाव) जारी है...........

जय हिंद!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें