शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

"युवा शक्ति, राष्ट्र शक्ति"

कहते है युवा शक्ति राष्ट्र शक्ति होती है, ये देश को दिशा देने का काम करती है। लेकिन आज की युवा शक्ति कहाँ जा रही है, उसकी सोच कैसी है। इससे आप अनुमान लगा सकते है की देश की दशा और दिशा कैसी होगी। मैं छात्र राजनीति से जुडा रहा हूँ, मैंने देखी है छात्र शक्ति। हम नारा देते थे "छात्र शक्ति, राष्ट्र शक्ति"। "जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है"। "आवाज़ दो, हम एक हैं"। "हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है"। मैंने उनका जूनून देखा है, वो जंग देखी है, जिसमे एक नारे पर छात्र सड़क पर उतर जाते थे। यही है वो युवा शक्ति जिसे राष्ट्र शक्ति कहते है।

लेकिन इस शक्ति का उपयोग हो रहा है या दुरुपयोग, इस पर गौर करना होगा। युवा शक्ति उस बाँध के पानी की तरह है, जिसे खुला छोड़ दिया जाय तो तबाही मचा दे, बाढ़ की विनाशलीला की तरह। जैसा कोसी ने बिहार में किया। लेकिन अगर इसको रोककर यानी बाँध बनाकर जैसा रिहंद बाँध, भाखडा नांगल बाँध बनाकर किया गया, तो हम बाढ़ की विनाशलीला से बच सकते है, नहर निकालकर सिचाई कर सकते है, बिजली बना सकते है, मछली पालन कर सकते है, पर्यटन का रूप दे सकते है। यही हाल युवा शक्ति का है। अगर हम खुला छोड़ देंगे तो दंगे-फसाद होंगे, लूटमार होगी, अत्याचार होगा, हत्या और अपहरण होंगे। आप ख़ुद अंदाजा लगा सकते है स्वछन्द होकर ये शक्ति क्या-क्या कर सकती है। लेकिन इसी शक्ति का उपयोग किया जाय तो कितने फयदे हो सकते है। सबसे पहला फायदा तो यही होगा की हम इन सारी विनाशलीलाओ से बच जायेंगे अपितु इससे तमाम फायदे होंगे जो देश के विकास में अहम् योगदान देंगे।

इस ताकत को राजनीतिक दल समझते है तभी तो हर दल अपना यूथ विंग बनाते है जो उनकी रैलियों के लिए भीड़ जुटाते हैं, मोर्चा निकालते हैं, प्रदर्शन करते हैं, लाठी-गोली खाते हैं। लेकिन जब चुनाव में टिकट देने कि बारी आती है तो बुजुर्ग(घाघ) नेताओ को टिकट मिल जाता है और आम आदमी के हक-हकूक कि लडाई लड़ने वाली युवा शक्ति को दरकिनार कर दिया जाता है। ये दल यूथ विंग के साथ स्टुडेंट विंग भी बनाती है ताकि कॉलेज-यूनिवर्सिटी से थोक में इन्हे जुनूनी भीड़ मिल सके जो इनके थोथे नारों पर कट मरे। ऐसा कब तक होता रहेगा, हम कब तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे। ये स्वार्थी नेता, ये सिद्धान्तहीन दल कब तक अपने कुत्सित इरादों को पूरा करने के लिए इस युवा शक्ति को माध्यम बनाते रहेंगे।

ये शक्ति अगर सामाजिक कुरीतियों, विघटनकारी तत्वों के पीछे पड़ जाय तो वो क्या दिखाई देंगी। आप बदलाव की अपेक्षा किस से करेंगे जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी इस ग़लत सिस्टम का हिस्सा बनकर गुजार दिया या उनसे जिनमे ताकत है, हिम्मत है, जज्बा है, जूनून है। जो अपने फौलादी इरादों से कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत रखते है। बड़े-बुजुर्गो से हम केवल सलाह लेने और अनुभव बांटने का काम कर सकते है। इन लोगो से बदलाव की अपेक्षा नही करनी चाहिए। मुझे खुरशीद का वो शेर याद आ रहा है कि-

"क्या यही दर्द है खुरशीद हमारे दिल में, घर जला भाई का और उठके बुझाया न गया"

और ये आग बुझाने का काम केवल युवा शक्ति ही कर सकती है।

जय हिंद !

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