लोकतंत्र में सबको बराबर का अधिकार है। चाहे वो गरीब हो, अमीर हो, राजा हो फकीर हो। अगर अधिकार बराबर है तो कर्तव्य भी बराबर है। वर्णमाला में पहला स्वर होता है अ, यानी अधिकार। और पहला व्यंजन होता है क यानी कर्तव्य। तो जितना महत्व अधिकार का है उतना ही महत्व कर्तव्य का भी है। हमारा अधिकार अगर मजबूत लोकतंत्र पाने का है, अच्छा नेता पाने का है, बढ़िया सरकार पाने का है तो हमें वैसे ही कर्तव्य भी निभाने पड़ेंगे। लेकिन आज स्थिति इसके विपरीत है। हमें अपने अधिकारों की तो चिंता है लेकिन कर्तव्यों की कोई चिंता नही है। और अपेक्षा है की नेता सुधर जाय, अधिकारी ठीक काम करे, सरकार बढ़िया हो। अगर हमें सब बढ़िया चाहिए तो सब बढ़िया करना पड़ेगा।
जो तबका अपने आपको सबसे सुशिक्षित, समझदार, योग्य समझता है, चुनाव के दौरान खूब बहस करता है, वही चुनाव के दिन बूथ पर वोट डालने नही जाता। जिसका रिजल्ट निकलता है गलत उम्मीदवार की जीत के रूप में। चुनाव का वोटिंग प्रतिशत करीब ५० फीसदी होता है यानी आधे लोग जीते उम्मीदवार को पसंद नही करते, अगर यही तबका वोट करने जाता तो स्थिति कुछ और होती। ये लोग इस बात का रोना रोते है की उम्मीदवार ही बढ़िया नही होते तो भाई जो बढ़िया है उसे मैदान में लाओ, और अगर आप अपने को बढ़िया मानते हो तो ख़ुद मैदान में उतर जाओ। क्रांति हमेशा खून मांगती है, आप खून मत दो लेकिन अपनी छोटी-छोटी जिम्मेदारियों से तो मत भागो।
निगाहे मरदे मोमिन से बदल जाती है तकदीरे,
जो हो जौके यकीन पैदा तो कट जाती है जंजीरे।
यकीन मानिये अगर आप हिम्मत कर खड़े हो गए तो तस्वीर कुछ और होगी। हम चाहते है कि बदलाव हो लेकिन शुरुआत हम न करे , तो भाई बनी बनाई खिचडी खाने का आप इंतजार करो मैं तो बागी बन चुका हू अपने तरीके से लड़ने में लगा हू। क्योंकि मैं मानता हू-
तेरे लहू से सीचा, है अनाज हमने खाया,
ये जज्बा-ऐ-शहादत है उसी से हममे आया।
जय हिंद!
"एक मौलिक बात है, जब किसी न किसी को पहल करने की जरुरत है तो मैं क्यों नही."
जवाब देंहटाएंआपके जज्बे को सलाम. मतलब साफ़ है रास्ते के पत्थर को उसपे चलने वाला राहि ही हटाता है.
वैसे मैं भी मुसाफिर हूँ उसी राह का - अब हाथ जले या पांव, लक्ष्य तो सामने दीखता है. शुक्रिया.
- सुलभ ( यादों का इंद्रजाल )